Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति १) १४

पहिली रितु चज़ली
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ॴ श्री वाहिगुरू जी की फतह ॥
अरथां लई देखो रास ३ दे आदि विज़च।श्री भगवती जी सहाइ ॥

भगवती = भगअुती = तलवार दा नाम है,
यथा: लई भगअुती दुरगसाह।
(अ) वाहिगुरू जी दा तेज।
यथा: प्रिथम काल सभ जग को ताता ॥ तां ते भयो तेज बिखाता ॥
सोई भवानी नाम कहाई।
(ॲ) वाहिगुरू विज़च लिग भेद नहीण, इस करके भगवत, भगवती अुसे दे
नाम हन।
अरथ: स्री साहिब जी सहाइ।
सूचना: शारदा दा मंगल अगे अंक २ विज़च करदे हन इस करके एथे मुराद
तलवार तोण ही जापदी है।
अथ रुत प्रथम श्री कलीधर प्रबंध कथन।
{प्रबंध = साहित रचना, खासकर काव रचना। काव निबंध। }
अरथ: हुण श्री (सतिगुरू साहिब गुरू गोविंद सिंघ जी) कलगीधर (महाराज दे
इतिहास दा) काव निबंध प्रथम रुत विच कथन करदा हां।
१. ।इश देव-श्री अकाल पुरख-मंगल॥
ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति १ अगला अंसू>>२
दोहरा: तीनो काल अलिपत रहि, खोजैण जाणहि प्रबीन।
बीनति सचिदानद त्रै, जानहि मरम रती न ॥१॥
अलिपत = असंग। जो लिपायमान ना होवे, निरलेप।प्रबीन = चतुर पुरश, लाइक। बीनति = विज़त्रेक करदे हन।
इह नहीण, इह है, इअुण विचार दुआरा अुसदे सरूप लछणां ळ छांट लैणदे हन,
भाव जाण लैणदे हन।
मरम = भेत।
अरथ: जिस ळ प्रबीन लोक खोजदे हन (पर ओह) तिंनां कालां विच अलिपत रहिदा
है, (हां प्रबीन अुस ळ) सत चित आनद त्रै पदां दा लकश (तां) विज़त्रेक कर
लैणदे हन, (पर अुस दा) भेद रती भर नहीण जाणदे।
भाव: प्रबीनां दी खोज मन बुज़धी नाल हुंदी है वाहिगुरू मन बुज़धी तोण परै है,
विकार तोण अलेप है इस करके ओह ऐसे सरूप वाला नहीण जो मन बुज़धी दा
विशा हो सके, सो प्रबीनां दी खोज अुस ळ पा नहीण सकदी। हां, प्रबीनां ने

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