Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) ११५
गुरू द्रोह ते कीनसि नाशा ॥२८॥
श्री गुर तेग बहादर पाछे।
श्री गोबिंद सिंघ भे गुर आछे।
श्री गुजरी ते जनम लियो है।
पुरि पटंै महिण खेल कियो है ॥२९॥
ब्रधो१ सरीर बहुर चलि आए।
मदर देश२ निरखे* हरखाए३।
तीन भारजा+ जिन घर होई।
नाम अजीतो दीरघ४ सोई ॥३०॥
पुज़त्र तीन अुपजे बल भारी।
मानहुण अगनि तीनहु५ तन धारी।
अपर सुंदरी नाम पछानो।
शुभ मति पतिब्रत धरम निधानो६ ॥३१॥
तिस के सुत अजीत सिंघ होवा।
बहु रिपु हति७ जो रन महिण सोवा८++।
तीसर साहिब देवी दारा।
तांहि खालसापुज़त्र अपारा ॥३२॥
इम साहब दसमे पतिशाहू।
तुरकन सोण रण करि अुतसाहू।
अनिक प्रकारन कीन अखारे।
करि पुरशारथ९ को रिपु मारे ॥३३॥
१वधिआ।
२वेदक समेण विच पज़छम वल कशप सागर दे दज़खं दा देश। पुराण अनुसार रावी ते जेहलम दा
विचला देश। परंतू हिंदी लिखतां विच भाव पंजाब तोण है, जिस विच ओह अंबाला, लुदिहांा,
फीरोग़पुर, जमना अुरारला हिज़सा शामल समझदे हन।
*पा:-बिलसे।
३देखिआ ते खुश होए।
+तिन विआहां पर विचार राशि ४ अंसू २७ अंक ४६ दी हेठली टूक विच दिज़ती गई है।
४वज़डी।
५तिंन अगनीआण ने।
६खग़ानां।
७शत्र नाश करके।
८युज़ध (भूमका) विच सुज़ता।
++पा:-जोवा।
९बल।