Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) २६
होर अरथ:
सुधारतिकी पद दे इज़थे बड़े ही अरथ लगदे हन:-
.१. सुधा रति = अंम्रित विच प्रीत है जिन्हां दी भाव-देअुते।
ओट सुधारतिकी = (तूं) देवतिआण दी ओट हैण।
२. कुाधरत की = भुखिआण दी। मुराद है-भुज़खे भअुरिआण दी ओट कमल है जो
तेरे हथ विच है। भाव तूं अुपासकाण ळ वर दाती हैण।
३. सुधारतिकी = ।सुधारण या शोधन अरथ: फबन, अुज़जलता॥।
ओट सुधारतकी = तूं फबन या अुज़जलता दी ओट हैण।
४. सुधार+तकी = सुधारके (पज़की तर्हां निशचे करके) तज़किआ है, तेरी ओट
(ठीक है मैळ), या तेरी ओट मैण तकाई है।
५. सुधार+तकी = हथ विच तूं कमल सुधारके (पकड़िआ है) तां मैण तेरी ओट
तकाई है कि जिवेण तूं कमल ळ ओट दे रही हैण मैळ बी देवेणगी।
६. सुधा = मकरंदरस। रति = प्रीती। हथ विच कमल है, जो कमल कि ओट है
सुधा ते रति दी, भाव-कमल विच मकरंद रस हुंदा है ते भौरिआण दी प्रीत
दी औट कमल हुंदा है।
७. सुधार के तकी हथ विच कमल (लैके ते अज़ख दी ओट = छज़पर सुधारके तज़की
भाव) ऐसे कटाख नाल तज़की कि रती दी सारी प्रभता मात पै गई।
८. ओट+सुधार+तकी।
ओट सरसती दी, अरथात हंस जिस दे आसरे अुडदी है। भाव हथ विच
कमल लैके ते हंस ळ सवारके ऐसी तज़की कि रती मात पै गई।
३. इश गुरू-श्री गुरू नानक देव जी-मंगल।
सैया: करितारनि से शुभ बाक बिलास
बिहंग बिकारन को करि तारनि।
करतार नही मन जानति जे
तिन,के हित,को सिफती करि तारन।
करि तारिनि पाप अुतारन को
गन दंभ छपै सविता करितारन।
करतार निहार गुरू बर नानक
दास अुधारन जिअुण करि तारनि ॥८॥
करितारनि = कलितारण। (कलि दा लला-राग-हो गिआ है सरणी होण
करके।) कलिजुग तोण तारन हारे। (अ) जो करता होके जग विच आवे:- अवतार,
पिकंबर।
बिलास = सहिज सुभा, हसदिआण हसदिआण। बिहंग = पंछी
करितारनि = करके ताड़ना। तारन दा ड़ाड़ा रारा हो गिआ है।
करतार नहीण = वाहिगुरू (ळ) नहीण।