Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति २) १२३
१६. ।तंबोल संभाल के नद चंद दा वापस होणा॥
१५ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति २ अगला अंसू>>१७
दोहरा: सुनि जसवाल वग़ीर तबि, फतेशाह के बैन।
भीमचंद के ढिग गए, थिरो जहां रिस नैन१ ॥१॥
चौपई: तरकति वाक कहो जसवाल।
तव समधी को रस गुर नाल।
अुलटो तुम कौ चहहि मिलायो२।
लखीअति गुर कराह कुछ खायो ॥२॥
करामात साहिब प्रभु जानै३।
तिन सन दैश नहीण किम ठानै।
जथा४ बनो गुरसिज़ख बिसाला।
तिम५ बोलति हम सोण इस काला ॥३॥
रावरि क्रोधन जानो घने।
फिरो न गुर ते, रस अुर सने६।
जथा आइ तुमरे मन मांही।
करो तथा को बरजति नांही ॥४॥
सुनि करि भीमचंद रिस छाई।
अगनि जलति आहुति जनु पाई७।
कहो देहु करि कूच नगारा।
मैण न करौण कछु अंगीकारा ॥५॥
आन थान निज नदन बाहौण।
इस के देश न आवनि चाहौण।
अस दुशमन मेरो दुखदाई।
तिन के संग प्रीति अुपजाई ॥६॥
जिम गुर शज़त्र तथा इह८ मेरो।
लरौण दुहन सोण परो बखेरो।
१क्रोधी अज़खां वाला।
२(गुरू जी नाल) मिलाया चाहुंदा है।
३(गुरू जी ळ) जाणदा है।
४मानो।
५ऐअुण।
६भाव दिल विच पार है।
७अहूती मानो पाई है।
८भाव फतेशाह।