Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (ऐन २) २५हेरति अुतरे पुरि बुरहान।
तहि की संगति सदन सुधारा।
गुर के हेतु मनोरथ धारा ॥३१॥
करहि बसावन इस के मांहि।
सभि संगति पुनि दरशन जाहि।
संमत आगे सदन बनाए।
धरी कामना -बसि हैण आए- ॥३२॥
संगति की पूरन अभिलाखा।
पहुचे गुरू सकल मग नाखा१।
संगत के मुखि सिख चलि आए।
ले गमने है करि अगवाए ॥३३॥
हाथ जोरि अुतराइ बडेरा।
संगति आनि दरस को हेरा।
अनिक अकोरन अरपि अगारी।
दरब बिभूखन पट मुल भारी ॥३४॥
बहु पकवान तिहावल आए।
करि अरदास अखिल बरताए।
हेत दे के चावर चून।
घ्रित मिशटान आनि सभिहूंनि२ ॥३५॥
कीनी बिबिधि बिधिनि की सेवा।
करे प्रसंन भले गुरदेवा।
खुशी करी सभि पर हरखाए।
पुरी कामना सिख समुदाए ॥३६॥
तपती नदी तीर पर डेरा।
अूच दमदमा सुंदर हेरा।
तहां बास प्रभु निसा बिताई।
सौच शनान प्राति हुइ आई ॥३७॥
बसत्र शसत्र सजि कै बिधि नाना।
ग़ेवर जबर ग़ेबजिन जाना।
सभा खालसे की दिशि चारी।
१लघके।
२सारे लिआए।