Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ७) १५३
१७. ।डरोली साईण दास दे घर॥
१६ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ७ अगला अंसू>>१८
दोहरा: हरी चंद गुरु ससुर जो,
पिता नानकी केर।
आयो वहिर सभारजा,
अुर धरि प्रेम बडेर ॥१॥
चौपई: सभि कुटंब जुति श्री गुर हेरा।
मोचति नीर बिलोचन केरा१।
बोलो गुर अलब पुरि सारो।
तुम तागति२ नहि करी अवारो ॥२॥
पति बिहीन जिम रहति न नारी।
ससि बिन निसा३, नदी बिनबारी४।
महिपालक बिन चमूं न आछै।
तथा पुरी सभि तुमरे पाछै ॥३॥
रहे अुडीकति आगै गए५।
केतिक दिन महि आवन किए।
पुरि जन निराधार किम रहैण।
अुजर जाहि, कै तुम संग लहैण ॥४॥
मैण अबि तार होइ करि आयो।
चहौण आप के संग सिधायो।
सुता, सुता सुत६, सहित तिहारे।
अुर अनद नित लहौण निहारे ॥५॥
सुनि करि ससुर गिरा गुर भारी।
धीरज दैबे हेतु अुचारी।
इह गुर पुरि नित बसहि सवाया।
अंन दरब की कमी न काया७ ॥६॥
१भाव अज़खां तोण जल चलदा है।
२आप ने (पुरी) छज़डदिआण।
३चंद बिना रात्री।
४जल।
५जद आप अज़गे गए साओ।
६पुत्री ते दोहता भाव माता नानकी जी ते अुन्हां दे पुज़त्र श्री गुरू तेगबहादर जी।
७कोई।