Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) १५८
१३. ।हरीके दा चौधरी, खडूर दा मद पानी चौधरी ते सिख चोर प्रसंग॥
१२ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि १ अगला अंसू>>१४
दोहरा: एक बेर श्री गुर गए, ग्राम हरीके+ थान।
प्रिथम बास तहिण कुछ कियो१, पहुणचे मेली जानि ॥१॥
चौपई: डेरा करो ग्राम तिस जाइ।
जिन के संग सिज़ख समुदाइ।
सुनि सुनि महिमा नर बिसमाए।
श्री नानक गादी इन पाए ॥२॥
मेली हुते मिले सभि आइ।
करि बंदन बैठे समुदाइ।हुते हरी के तहिण सरदारा।
तिन भी सुनि करि सुजस अुदारा२ ॥३॥
-करमाति साहिब गुर भए।
पूरब बसति हुते३, जो गए-।
मिलनि हेतु सो भी चलि आयो।
सुधि हित मानव प्रथम पठायो ॥४॥
श्री अंगद तिन की गति जानी।
अधिक पदारथ ते बड मानी४।
यां ते एक पंघूरा५ लावो।
तिस बैठनि के हेत डसावो ॥५॥
दास आनि ततकाल बिछावा।
इतने महिण चलि करि सो आवा।
केतिक संग लोक तहिण आए।
सभिनि देखि कै सीस निवाए ॥६॥
तिन महिण मानी जो सरदार।
नहीण पंघूरे दिशि पग धारि६।
+नांगे दी सराण (मुकतसर) दे कोल इह हरीके पिंड है।
१पहिले कुछ (समां गुरू जी) ओथे वासा कर आए होए सन।
२बड़ा।
३पहिले जो इज़थे वसदे हुंदे सन।
४भाव शाहूकार होण करके हंकारी है।
५पीड़्हा, मूड़्हा।
६चरन ना रखे।