Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १२) १५७
१९. ।बाल लील्हा। बेड़ी दी सैल। इक ब्रिधा ळ खिझाअुणा॥
१८ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि १२ अगला अंसू>>२०
दोहरा: इस प्रकार श्री सतिगुरू,
खिलति वहिरनिकसंति।
बालिक ब्रिंदनि के सहति,
धावति गहि बिकसंति१ ॥१॥
सैया: इक दोस लिए संग बालिक ब्रिंदन
मात की आइसु ते हरखाए।
मिल मातुल संग सु गंग नदी तट
आज चलै जल को दरसाएण।
निकसे निज धाम गुरू अभिराम
सु कामना जाचक की पुरवाए२।
मुख सुंदर ते बच बोलति हैण
जनु फूल झरैण हुलसैण समुदाए ॥२॥
बीथका मैण बहु बालिक भाव ते
क्रीड़त३ जाति सुहावति हैण।
देखति सेवक कै नर आनि
प्रभाव ते४ सीस निवावति हैण।
आपस मैण मिलि कै पुरि के
नर कीरति ब्रिंद सुनावति हैण।
दीसति हैण लघु रूप गुरू
तअू तेज बिसाल दिपावति हैण ॥३॥
सैया: श्री गुरु तेग बहादर नदन
बंदन जोग निकंदन पीरा।
बाक फुरै कहि जाणहि सुभाइक
रंक ते राव करैण गज कीरा५।
भूखन सुंदर सूरति है
१दौड़दे हन ते फड़के बालां ळ प्रसंन हुंदे हन।
२मंगण वालिआण दीआण कामनां पूरदे हन।
३खेलदे।
४प्रताप (देखके)।
५कीड़ेतोण हाथी
(अ) हाथी तोण कीड़ा।