Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ३) १६२
१३. ।पहाड़ी राजिआण ळ अुपदेश॥
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दोहरा: भैरव शबद अुतंग ते, अरु होवनि भुवचाल।
सैलपती सभिहूं लखो, बिदतनि काली काल ॥१॥
चौपई: बहुर सुनोण बर ले गुर आए।
अदभुत लखि करि अुर बिसमाए।
भीमचंद ते आदिक जेई।
दरशन करिबो चाहति सेई ॥२॥
पठि पाठि करि बहु बिधि अुपहार।
आइ पहूचे गुर दरबार।
सभा सथान बिसाल सुहावा।
अनिक रंग को फरश डसावा ॥३॥बीच सिंघासन सतिगुर केरा।
सुभट सिज़ख बैठे चहु फेरा।
चेतो आदिक बडे मसंद।
थूल देहि अरु धनी बिलद ॥४॥
कवि गुन जन सोण सभा सपूरन।
बैठे शोभति हैण बिधि रूरन।
भीमचंद ते आदिक राजे।
पहुचे प्रभू मिलनि के काजे ॥५॥
रिदे राज मद धरे बिसाला।
शसत्र बिभूखन जुति भट जाला।
कर बंदे बंदन कहु करी।
धन की भेट अज़ग्र करि धरी ॥६॥
आइसु ले बैठे गुर तीर।
खड़ग सिपर कहु धरे सरीर।
देवी बिदतनि ते बिसमाए।
सभा मझार थिरे समुदाए ॥७॥
लाल गुलाल गुरू को रंग।
खड़ग बिसाल कसे कट संग।
तीखन तीरनि भरो निखंग।
धनुख दराग़ निठुर बर अंग ॥८॥