Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) १७४

१५. ।स्री अमरदास जी दा गुर अंगद जी नाल मिलाप॥
१४ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि १ अगला अंसू>>१६
दोहरा: स्री गुर अंगद की सुता, बीबी अमरो नाम।
भगति धार बपु आपनोण१, अुपजी सतिगुर धाम ॥१॥
निसानी छंद: अनुज२ हुतो स्री अमर को, तेजो के ताता३।
तिस के नदन संग इहु, बाही बडि गाता।
बिदा होइ पित पास ते, ससुरार बसंती४।
बहुत बरख तिन घर रही, अमरो मतिवंती५ ॥२॥
महिमा लखी न किनहु तिह, नितप्रति इम ठानै।
ग्रहि६ धंधा सभि दिन करहि, तिन आइसु मानै।
जागहि पाछल राति कौ, करि शौच शनाना।
श्री नानक बानी पठहि, करि प्रेम महाना ॥३॥
तिसनिस अुठि सतिगुर सिमर, मज़जन कौ ठाना।
पठहि गुरू के शबद शुभ, फल जिनहु महाना।
दधी७ बिलोवति८ सहजि सोण, मुख बोलति बानी।
हुइ प्रसंन करि प्रेम सोण, निज ब्रिती टिकानी ॥४॥
निज घर पर श्री अमर जी, चिंता लताने।
जागे सगली जामनी, पुन पुन पछुताने।
सतिगुर दरशन चितवने, बिनती बहु भाखे।
जाम निसा ते धुनि९ परी, सुनि मन अभिलाखे ॥५॥
सुननि लगे मन रोकि कै, सुंदर गुरबानी।
चुभति चीत दरवति रिदा१०, रुचि जगी महानी।
तहिण ते अुठि हुइ निकट तिह, ओटा११ इक लीना।


१(मानो) भगती आपणा सरीर धारके।
२छोटा भाई।
३पुज़तर।
४सहुरे वज़सदी सी।
५बुधिवान।
६घर दा।
७दहीण।
८रिड़कदी होई।
९भाव बीबी दे शबद पड़्हन दी धुन।
१०पंघरदा है दिल।
११ओहला।

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