Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ५) २८

३. ।पंमा माचड़ दूत होके रिहा। घोड़े चोरे॥२ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ५ अगला अंसू>>४
दोहरा: सतिगुर सभा लगाइ करि,
ब्रिंद खालसा आइ।
सोढी बेदी ब्रिंद ढिग,
शोभति जिअुण सुरराइ ॥१॥
चौपई: पंमा माचड़ निकट हकारा।
लए अकोरन आवनि धारा।
खरो तुरंग१ खरो करि आगे।
तुपक धरी दै देखनि लागे ॥२॥
करि जोरति ठानति भा नमो।
बैठो निकट सछल तिह समो।
भीमचंद न्रिप कीनसि बिनती।
करी संधि तुम सोण तजि गिनती ॥३॥
जानति भा चित हहु गुर साचे।
प्रीति करन महि जिस चित राचे।
सभा बिखै सुनि करि अस बैन।
कहो प्रभू तिस दिशि करि नैन ॥४॥
श्री मुखवाक ॥
पंमा वग़ीर। आखर बिपीर२।
बामन का बोल। समझ बिन सोल३*।
राजपूत की जात।
न मीत साधू न ताति माति४+।


१चंगा घोड़ा।
२अंत ळ बेपीरा (निकलेगा)।
३ठढ पाअुण वाला(सुखदाई) है पर बिसमझिआण ळ।
।संस:, सोल=ठढा॥। (अ) सोलां (आन) बे समझी दा है (इस ब्राहमण दा बचन)
*पा:-समझ बिनमोल।
४ना साधू दी ते ना ही पिता माता दी मिज़त्र है।
+इस दा भाव राज करनहाराण तोण है जो राज दी खातर माता पिता साधू किसे दा लिहाग़ नहीण
करदे जिवेण अखौत है राज पिआरे राजिआण वीर दुपरिआरे।
गुरू जी ळ जो पहाड़ीआण राजिआण वलोण दगे ते तजरबे हो चुके हन, अुहनां वल सैनत है।
इहो भाव अगले वाक (अंग १०) विच है कि राज घराणिआण ने कई वेर जंमण वाले मारे हन,
एह लोक पालंहारिआण ते पुज़त्र मिज़त्राण तज़क ळ बी मारनो नहीण टलदे। गुरू जी जंा इह रहे हन
कि इह पंमा बी दे करन वाला है ते इस ळ घज़लं वाले बी कपट कर रहे हन।

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