Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ६) १७३

२२. ।वैरीआण दे जल रोकन ते फिर जारी करना॥
२१ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ६ अगला अंसू>>२३
दोहरा: अूपर ते जल अनद पुरि, लघु नारो चलि आइ।
सकल काज पियनादि१ जे, करति सिंघ समुदाइ ॥१॥
चौपई: तित दिश डेरे परे पहारी।
भीम चंद ढिग सचिव अुचारी।
जाति वहिर ते जल विच घेरे२।
कोण नहि रोकहुरहै पिछेरे? ॥२॥
जिस ते रिपु गन संकट पावैण।
को अस न्रिपत, नहीण जु बनावै३।
सुनति गिरेशुर बहुत पठाए।
पाइ बंध जल को अुलटाए ॥३॥
शुशक गयो जल जबि नहि आयो।
खोट पहारी को लखि पायो।
गए सिंघ अरदास बखानी।
प्रभु जी! रोक लियो रिपु मानी ॥४॥
करनि सुचेता आदिक कारा।
सरब खालसा करति सुखारा।
सुनि बिनती निज दासन केरी।
कलीधर बोले तिस बेरी ॥५॥
सतुज़द्रव सलिता शकति समेता।
सो जल देइ खालसे हेता।
दुशटनि की रोकी नहि रहै।
निखल४ खुटाई तिन की लहै ॥६॥
इम कहि लावनि हेत बखाना।
निज तरकश ते दे करि बाना।
पहुचहु सतद्रव केरि किनारे।
हमरो दिहु संदेश अुचारे ॥७॥
-आइ संग्राम समोण बड होवा।

१पीं तोण आदि लैके।
२भाव अंदर जिथे गुरू जी हन।
३जे (वैरी दे दुज़ख देण दी सूरत) ना बणावे।
४सारी।

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