Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ९) १७३

२३. ।सरमद कतल॥
२२ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ९ अगला अंसू>>२४
दोहरा: तिन दिवसनि महि दूत इक, दिज़ली पुरि मैण आइ।
रूम वलाइत शाह ने, लिखि करि दियो पठाइ ॥१॥
चौपई: शुकर सबर दो नाम जु कहैण।
कहां माइना इन को अहै?
बूझनि हेतु१ नुरंग पास।
होइ जथारथ करहु प्रगास ॥२॥
नहीणमाइना इन ते आवै।
तौ सरमद इक संत कहावै।
तिस ते बूझहु भले बिचारि।
लेहु माइना जो हुइ सार ॥३॥
सो दिज़ली महि आनि प्रवेशा।
डेरा कीनसि पिखो अशेशा।
बहुर शाहि कै निकटि पधारा।
मुलाकात करि, हेतु अुचारा ॥४॥
हग़रत जसु तुमरो बहु भाखे।
-चौदां सै अुलमावनि राखै-।
इम सुनि कै इत मोहि पठावा।
हेतु मायने बूझनि आवा ॥५॥
शुकर सबर ए नाम जु दोइ।
इन को कहां मायना होइ।
सो मो कहु दीजै समुझाइ।
दानशवदनि ते करिवाइ ॥६॥
सुनि नौरंग अुमराव* बुलावे।
अनिक मुलाने तबि चलि आए।
बहु भांतनि ते रिदै बिचारहि।
निज निज मति अनुसारि अुचारहि ॥७॥
ातर जमा न तिस की होइ।


१(आवं दा) कारन।
*इथे शुज़ध पाठ-अुलमाव-चाहीदा है, लिखारी दी भुज़ल नाल अुमराव हो गिआ जापदा है। अुलमाव
= इसलाम दा पंडित। अुमराव = अमीर, हुज़देदार।

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