Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ६) १७६
२१. ।गोइंदवाल गुरदारे दरशन॥
२०ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ६ अगला अंसू>>२२
दोहरा: श्री गुरु अमर भतीज को,
सावं मल जिस नाम।
नद चंद मल तांहि को,
सुनि कै गुरू सधि धाम१ ॥१॥
चौपई: ततछिन सतिगुर के ढिग आयो।
धरि प्रसादि को सीस निवायो।
सादर निकटि बिठावनि कीनि।
कुशल प्रशन कहि सुनि सुख लीनि ॥२॥
सूपकार तिस छिन महि आवा।
असन तार सभि बाक सुनावा।ले आवहु तबि गुरू बखाना।
गए दास, लै थार महाना ॥३॥
सादति असन परोसनि करो।
चौणकी अूपर लाइ सु धरो।
दोइ थार कहि और अनाए।
सुंदर, ससि मल, अज़ग्र२ धराए ॥४॥
अपर सभिनि को तबि बरतायो।
लीनि जथा रुचि त्रिपते खायो।
ले जल हाथ पखारनि करे।
अनिक बचनि करि अुर मुद भरे ॥५॥
चंद मज़ल को गुरू सराहो।
सुंदर सहत दरस बहु चाहो।
बडी निसा बीती, घर जावहु।
करि बिसराम नीणद सुख पावहु ॥६॥
हाथ जोरि तबि दोनहु कहैण।
सकल जामनी तुम ढिग रहैण।
चिरंकालि ते मेल हमारा।
रहि समीप सुख लहैण अुदारा ॥७॥
१घरोण।
२सुंदर ते चंद मज़ल जी दे अज़गे।