Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ६) १८०
२३. ।खालसे दे लगर मसताने॥
२२ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ६ अगला अंसू>>२४
दोहरा: पावैण संकट छुधा को, तअू रहैण ध्रिति धारि।
लरहि जंग कै अंन हित, करहि अुपाइ बिचार ॥१॥
चौपई: अरध निसा महि निकसे फेर।
मिलि करि सिंघ सु भूख बडेर।
गए कोस केतिक चलि जबै।
ग्राम अपर अवलोको तबै ॥२॥
बरे जाइ तिन सदन मझारे।
सभिहिनि को दै कै डर भारे।
अंन निकासि लीन मन भायो।
बंधि बंधि करि सीस अुठायो ॥३॥
जितिक अुठाइ लीन ले चले।
है सुचेत हटतोण सभि मिले१।
लरो न कोअू मिलो न अरी।
आइ दुरग महि खुशी सु करी ॥४॥
तुरकन के सूबे सैलेश२।
मिलि कै चिंता करी विशेश।
कित को जाइ सिंघ ले आवैण।
अंतर अंन बरे भट खावैण ॥५॥
सुनि गिरपतन राहु दिखराए।
इत कोगए अुतहु चलि आए।
देखि घात सिंघन की सारी।
तुरकनि रखी चमूं करि तारी ॥६॥
दस बीसक नर हेरन हारे।
सभि मारग को करति निहारे।
लगे रहे लैबे हित भेत।
नहि जानोण सिंघन संकेत३ ॥७॥
इकठे होइ गमन तबि कीन।
१हटं वेले आपस विच सारे मिले।
२गिरपती।
३सिंघां ने इस (वैरीआण) दी मिथी गल ळ ना जाणिआण।