Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ४) १८०

२३. ।श्री गुरू जी दे गुण॥
२२ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ४ अगला अंसू>>२४
दोहरा: इस प्रकार श्री सतिगुरू
केतिक समैण बिताइ।
करति नरनि कज़लान को
सिज़खी जग प्रगटाइ ॥१॥
निशानी छंद: श्री हरि गोविंद चंद जी, आनद बिलदै।
चढैण तुरंग कुरंग जनु, दुति मोर मनिदै।
अधिक पलाइ फंदावते, धनुसर१ धरि हाथा।
कबि अखेर हित गमनते, लै कै सिख साथ ॥२॥
बिज़दा आयुध की करहि दस संमत बैसा।
तीर प्रहारति बेग ते रिपु को अहि जैसा२।
महां सफाई बल सहत धरि लछ३ हनते।
गरक होति४ जहि लगति हैण सेवक निकसंते ॥३॥
आरबला जिन की अलप, शुभ डील बिसाला।
भुजा प्रलब अलब बल५, ग्रहि धनुशकराला।
सुकचति पित ते करति हैण, इह रीत नवीना।
शुभति सिकंध अुतंग जुग, मुख बाक प्रबीना ॥४॥
दिढ संधी जुग बाणह की, भुजदंड प्रचंडे।
कर साखा दीरघ सुमिलि, शुभ रेखनि मंडे६।
रेखा लगि मणिबंध७ ते, भई मज़छ अकारा८।
रेखा छतर अकार की, जिस को फल भारा ॥५॥
आयुत छाती, अुदर पर, त्रिवली९ दुति पावै।
चिबुक चारु बिसत्रिति कुछ१०, चौणका चमकावै१।


१धनुख ते बाण।
२सरप दे शज़त्र = गरड़ वाणगू तीर त्रिज़खा जाणदा है (अ) सज़त्र ळ, सज़प मारन वाणगू।
३निशानां धरके।
४गज़ड जाणदे हन (तीर)।
५बाहां लबीआण बल दे आसरे........।
६(कर साखा =) हज़थ दीआण अुणगलीआण लबीआण ते इको जिहीआण चंगीआण रेखां नाल शशोभत।
७गुज़टां वाला थां ।संस: मणिबध = जिथे रतनां दीआण चूड़ीआण बंन्हीआण जाण॥
८मज़छ दे अकार वाली रेखा।
९पेट पर पैं वाले त्रै वल।
१०सुहणी ठोडी फैली होई थोड़ी जेही।

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