Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ४) २९
३. ।मोमन शरफ॥
२ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ४ अगला अंसू>>४
दोहरा: जहां वधी संतान तिन, भई सकल इकरंग।
तनुजा अुपजी गोरटी, बहु सुंदर सरबंग ॥१॥
चौपई: मोमन शरफ१ भयो तहि राजा।
अधिक ब्रिधायहु राज समाजा।
तिन के सदन हुती पटराणी।
सुंदर अंगनि सकल सवाणी ॥२॥
तिस ते पुज़त्र भयो बलवाना।
जान महान अधिक सवधाना।
कछु अज़नाइ राज मैण कीना।
मोमन शरफ जबहि सुनि लीना ॥३॥
रिस धरि तिस को सदन निकारा।
नही हकारनि बहुर संभारा।
पिता निकासो चलि सो आयो।
तिन लोकन मिलि समा बितायो२ ॥४॥
चिरंकल जबि मिलि करि रहो।
नाम सजादा तिस को कहो।
एक सुता अुपजी तिस केरी।
जो सुंदर सरबंग बडेरी ॥५॥
शंकर बरण सु नरन मझारा।
तरुनापन३ तन मांहि संभारा।
राजा मोमन शरफ महांना।
इक दिन पुरि ते करि प्रसथाना ॥६॥
सहिज सुभाइक बिचरति भयो।
देश बिदेशन देखति गयो।
आयो तिन लोकन४ के नगर।
जिह ठां बास करति वै सगर ॥७॥
१नाम राजे दा।
२अुस ने (आम) लोकाण विच मिलकेसमां बिताइआ। (अ) अुहनां लोकाण विच भाव शंकर वरण
वालिआण विच आ वज़सिआ।
३जवानी।
४जिन्हां विच वरण शंकर सी।