Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति २) १८७
२५. ।जंग शुरू॥
२४ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति २ अगला अंसू>>२६
दोहरा: श्री गुर गोविंद सिंघ जी, रण समाज करि तार।
भए अरोहन बाज पर, प्रथम बंदना धारि ॥१॥
भुजंग प्रयात छंद: चले जंग सौणहगे भगौती१ मनाई।
सग़ोरं दुचोबान२ धौणसे लगाई।
अुठी बंब३ अूची गणं सैल गाजे४।
महांबीर बंके सभै शसत्र साजे ॥२॥
रिदै अुतसाहं* तुरंगी अरोहे।
गुरू संग चाले महां जंग सौणहे५।अुठी धूर पूरं नभं छाइ लीना।
प्रकाशं न दीसै रवं६ ढांप लीना ॥३॥
बधे चुंग चौणपे चलाकी दिखावहि।
चले गोल७ आगे किकान कुदावैण।
बकैण बीर अूचे सु मारा बकारा।
प्रभू को सुनावहि पहारी संघारा ॥४॥
बडे बेग सोण बायु जैसे बहंती८।
तथा सैन सारी सु शीघ्रं चलती।
जथा मेघ वुज़ठे९ हड़ं नीर चाले।
परा बाणधि१० तैसे चमूं बेग नाले ॥५॥
भए सौन११ आछे बिजै देन वाचे।
१भगौती तोण मुराद भगौती दे झंडे वाले असिधुज = अकाल पुरख दी है जिस तर्हां ताज तोण कई
वेर ताजदार = पातशाह दी मुराद हुंदी है। (अ) स्री साहिब। (ॲ) भगवंत दी शकती (जो भगवंत
नाल अभेद है)।
२ग़ोर नाल दुहरी चोब।
३अवाग़
४गूंज अुठे।
*पा:-अुतसाहि।
५जंग दे साहमणे।
६सूरज।
७टोले।
८जिवेण वायू बड़ी तेग़ी नाल वगदी है।
९वरखं ते।
१०पर्हे बन्ह के।
११शगन।