Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ९) १८८२५. ।बेनवा॥
२४ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ९ अगला अंसू>>२६
दोहरा: आवति जाते बेनवा१,
सभि पर करहि अवाज२।
कितिक मुलाननि संग भी,
करहि तरकना साज ॥१॥
चौपई: सभिनि मुलाने मतो मताइ।
कहि नौरंग सो लीए बुलाइ।
करे समूह इकठे सोइ।
चलि आए मिलि कै सभि कोइ ॥२॥
निकटि हकारि बूझना करी।
शर्हा वहिर तुम कोण मति धरी?
सादर किसहि न बाक बखानहु।
हास समेत तरकना ठानहु ॥३॥
का तुम ने अपने मन जानी?
महद होहि किम जिस ते मानी३।
तागहु सगल न मनमति कीजै।
चलनि शर्हा कहु मारग लीजै ॥४॥
नांहि त दोग़क महि दुख पावहु।
तांहि बचावहि तिसहि मनावहु४।
सुनति बेनवनि कहो न माना।
खोटा नौरंग संग बखाना ॥५॥
हम पर तेरो हुकम न कोई।
मन भावति हम बोलहि सोई।
चोर यार करनी बटपारी।
तिसै सग़ाइ देहु हित धारी ॥६॥
हम फकीर दरवेशनिरीति।
अुचित सग़ाइ दोश नहि चीत५।


१इक प्रकार दे फकीर।
२सभ ते अवाग़ करदे हन (कि तुसीण किअुण शर्हा विच फस पए हो)।
३वडे किवेण होए हो? (दज़सो) जिस तोण असीण मंनीए। (अ) वज़डे हंकारी किवेण होए हो।
४तिस (शर्हा) ळ मंनो जे ओथे (दोग़ख तोण) बचावे।
५सग़ा ते दोश योग ना चितवै।

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