Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ७) १९०
२२. ।रामो, साईण दास, नराइं दास ते दया कौर प्रलोक पयान॥
२१ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ७ अगला अंसू>>२३
दोहरा: जहि जहि हुते सबंध गुरु, तहि तहि सुधि पहुचाइ।
आइ नराइं दास तबि, दारा जुति रुदनाइ ॥१॥
चौपई: रामो पति के सहत दुखारी।
को दिन महि परलोक पधारी१।
साईणदास अुदास अवासा२।
प्रान ताग करि गयो तमासा३ ॥२ ॥
श्री हरिगोविंद शुभ गति दीनि।
म्रितक क्रिया गुरदिज़ते कीनि।
एक सुता४ म्रितु सुनि करि आए५।
पिख दूजी को बहु रुदनाए ॥३॥
त्रिय जुति बसो नराइन दास।
जगति बिनासी लखो अुदास।
दिन थोरन महि तागे प्राना।
भयो तथा६ परमेशुर भाना ॥४॥
दयाकौर जुति शुभ गति पाई।
जिन की कुल सिज़खी चलि आई।
सभि के सतिगुरु पुशप७ चुनाए।
धरिडोरे सुर सर पहुंचाए* ॥५॥
सुनि सुनि जित कित ते चलि आए।
बहु की म्रितु लखि अुर बिसमाए।
बैठहि सतिगुरु सभा लगाइ।
१भाव रामो बी चल बसी।
२घर विच।
३तमाशा रूप संसार तोण। (अ) झज़ट पज़ट चला गिआ।
४इज़क पुज़त्री (दमोदरी जी दी)।
५आए सन (श्री नाराइं दास गुरू जी दे सहुरे जी)।
६(जिवेण पुत्रीआण साथ भांा वरतिआ सी) तिवेण।
७फुज़ल।
*पाठ किते सुरसुर है किते सुरसरि। जे पाठ सुरसरि होवे तां अरथ गंगा, गोदावरी ते
कावेरी हो सकदा है, पर सुरसर दा अरथ है = मानसरोवर। सभनां दे चलांे गुर रीती नाल हो
रहे हन। (देखो अज़गे अंक १२-१३)। फुल गंगा या मान सरोवर घज़लंे इक वाधू गज़ल जापदी है,
जो कैणथल राज दे ब्राहमणी प्रभाव दा फल है। मान सरोवर इतनी दूर है कि अुथे फुज़ल घज़लंे
संभव ही नहीण जापदे।