Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) २०१

१८. ।श्री अमरदास जी दा गोणदे नाल गोइंदवाल जाणा॥
१७ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि १ अगला अंसू>>१९
दोहरा: *अगले दिन श्री सतिगुरू,
बैठे संगति बीच।
करति क्रितारथ सेवकनि,
दरसति अूच रु नीच ॥१॥
चौपई: इक गोणदा खज़त्री तहिण आयो।
दरशन देखति सीस निवायो।
हाथ जोरि करि बिनै बखानी।
श्री गुर तुमरी सिफत महानी ॥२॥
सुनति रहो बहु लोक भनते।
करहिण सराहनि जे मतिवंते।
गुपत प्रगट जग जीव बिसालैण।
सभि सतिगुर की आइसु चालैण१ ॥३॥
मेरो ग्राम अुजार परो है।
सरब भूतने बास करो है।
देव जिंन बहु प्रेतनि जाती।
तहां कीन बासो अुतपाती२ ॥४॥
केते लाख३ प्रेत को डेरे।
फिरहिण जहां कहिण देश घनेरे।करहिण सथिती ग्राम मम आइ।
नर कोअू तहिण बसन न पाइ ॥५॥
दोहरा: करिते कंध अुसारिकै,
दिन महिण मानव ब्रिंद४।
निसा परै ढाहति सकल,
भीम कुरूप बिलद५ ॥६॥


*इक लिखती नुसखे विच एथे इह दोहिरा वाधू है- इमि कहि कै गुर अमरु सोण श्री गुर कीन
बिस्राम। राति बिखै सुपते सलग श्री गुर को धरि धान।
१चलदे हन।
२अुपद्रवीआण ने वासा कीता है।
३कई लख।
४दिने सारे लोकी अुसार के कंध (खड़ी) करदे हन।
५बड़े भानक खोटे रूप वाले।

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