Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) ३४

३. अरजन = बिनैवंत-जो बिनैवंत होए सारिआण ने ही मुकती पद पा लए,
आप ने ही श्री क्रिशन सरूप धारके जुमलारजन तोड़े सन, अथवा-अर जन
भए = जो दास होए अुन्हां मुकती पाई।
८. इश गुरू-श्री गुरू हरिगोबिंद साहिब जी-मंगल।
चित्रपदा छंद: सूर, सुरानि के हानि करे
छित आनति भे बनि के तन सूर।
सूरत सुंदर जो सिमरै
अुर मैण तत गान लहै मति सूर।सूर गहै कर मैण रण के प्रिय
निदक जे दुख पाइ बिसूर।
सूर बिसाल क्रिपाल गुरू
हरि गोबिंद जी तम शज़त्रन सूर ॥१३॥
सूर = शेर। ।संस: शूर: = शेर॥ (अ) सूल, दुख, कशट।
सुरान के हान करे = जो देअुतिआण ळ हानी करे, भाव दैणत।
(अ) सूर सुरान के हान करे = देवतिआण दे दुख दूर कीते।
छित = कित = धरती। (अ) रणभूमी। (ॲ) तबाही।
तन सूर = सूर तन = वराह तन। सूर वरगा सरीर, ब्राह रूप (विशळ जी
दा तीसरा अवतार ब्राह मंनदे हन)।
(स) सूर दा अरथ क्रिशन बी है।
सूर = पंडित। पंडितां। ।संस: सूरि = पंडित॥।
(अ) मति सूर = जो बुज़धी दे सूरमे हन।
सूर = बरछा। कोई शसत्र। ।संस: शूल = बरछा, शसत्र॥।
बिसूर = कशट, महां दुखी। ।संस: विसूरण = कशट॥।
(अ) पंजाबी विसूरणां = झूरण ळ बी कहिणदे हन।
दुख पाइ बिसूर = दुख पाअुणदे ते झूरदे हन।
सूर = बहादर, सूरमां। ।संस: सूर = बहादुर॥।
सूर = सूरज। ।संस: शूर = सूरज॥।
इस पद विच अज़ठ वेर-सूर-पद आया है, अरथ ऐअुण हन:-
पदमूल अरथ
.१. सूर शूर ।संस: ॥ शेर।
२. सूर शूर ।संस: ॥ बराह।
३. सूरत केवल सूरत पद दे पहिले
दो अज़खर फारसी सूरत। शकल।
४. सूर सूरि ।संस: ॥ पंडित।
५. सूर शूल ।संस:॥ बरछा।

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