Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि २) ३२

२. ।गुर रामदास सतोत्र। सिज़धां नाल चरचा॥
१ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि २ अगला अंसू>> ३
दोहरा: सिंघासन संतोख पर,
सज़त छतर अभिरामु।
सज़तनाम झंडा झुलति,
राजति सतिगुर राम१ ॥१॥
लछमी भगति बिसाल ते,
गान मुकट दुति धाम२।
पूरन सिख शुभ मति सचिव,
राजति सतिगुर राम३ ॥२॥
मैत्री, ध्रित, करुना, खिमा,
मुदिता, आठहु जाम४।
संदन५ की सैना सहत,
राजति सतिगुर राम ॥३॥
सारा सार विचार बर,
दिढ विरागु अभिराम६।
जोग धरम गज चमूं इहु७,
राजति सतिगुर राम॥४॥
सम, दम, जोग सु नेम, यम,
अुपरति, ततिज़खा नामु८।
सभि तुरंग की बाहिनी९,
राजति सतिगुर राम ॥५॥
शरधा, सौच, सु बुज़धि बर*,


१बिराजदे हन सतिगुरू रामदास जी।
२स्रेशट भगती रूपी लछमी है ते गान रूपी मुकट बहु सुंदर शोभ रिहा है।
३पूरे शुभ मति वाले वग़ीर हन ते राज करदे हन सतिगुरू रामदास जी।
४मैत्री, धीरज, क्रिपा, खिमा ते अज़ठे ही पहिर दी प्रसंनता।
५(इन्हां) रथां दी।
६सार असार दा स्रेशट विचार ते सुहणा दिढ वैराग
७(धरने) योग धरम जो है सो हाथी सैना है।
८जोग दे अंग:-
सम दम नेम आदिक।
९घोड़ सैना है।
*पा:-थिर।

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