Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १०)२०७
२९. ।श्री रामराइ जी दी ईरखा॥
२८ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि १० अगला अंसू>>३०
दोहरा: श्री हरिराइ तनूज ते१,
सुनि भाई गुरदास।
अपर मसंद जि मुखि हुते,
करति भए अरदास ॥१॥
सैया छंद: कोण तुम हौल करति हहु अुर महि,
चित अति चिंता महि पछुताइ।
सावधान हुइ सभि सुख पावहु
अपनो सुजसु प्रताप बधाइ।
सिख सेवक समुदाइ तुमारे
शरधालू सद ही चलि आइ।
पाइनि निमहि, अुपाइन अरपहि,
डरपहि गुर की वसतु चढाइ ॥२॥
ब्रिंद मसंद संगतां मांही
करहु पठावनि सगरे देश।
सिज़खी कअु नितप्रति बिसतारहि
तुमरी दिशि को दे अुपदेश।
-श्री सतिगुर को जेठो नदन
निमहि शाहु जिह चरन हमेश।
करामात के धनी संपूरन
जिन महि जागत जोति विशेश ॥३॥
बहुत बार अग़मतदिखराई,
दिज़ली पुरि अरु दिज़ली नाथ।
देखि देखि बिसमत चित होए२,
सगल अजाइब कीनसि गाथ-।
को जानहि को नाहिन जानहि
सभिनि सुनावहि हित के साथ।
निशचा गिरनि देहिगे काहु न,
कहि कहि आनहि टेकहि माथ ॥४॥
१रामराइ तोण।
२औरंगा ते दिज़ली शहिर वाले देख देख अचरज होए।