Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ३) २०६
१९. ।अंम्रत छकाइआ॥
१८ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ३ अगला अंसू>>२०
दोहरा: इम परखति सिज़खनि भले, सो दिन दियो बिताइ।
श्री गुजरी ढिग दास गे, गुर जसु कहो सुनाइ ॥१॥
चौपई: नहि परखे गुर करम भलेरे१।
जहि कहि निदा कीनि घनेरे।
परखनि करे सिज़ख समुदाए२।
अबि चाहति हैण पंथ अुपाए ॥२॥
कूरे भाखहि -क्रर सुभाअू-।
जे काचे, गुन लखि न सकाअू३।
सुनि करि मात अनद को पायो।
अति चिंता जबि प्रथम सुनायो ॥३॥
खान पान करि कै समुदाई।
सुपति जथा सुख राति बिताई।
रही जाम जागे सु क्रिपाला।
सरब सौच कीनसि तिस काला ॥४॥
पुन शनान करि बिधि वत नीरा४।
आर बंद५ कछ तजी अुतीरा६।
करो अपर धर कटि कछ तीरा७।
चीर सरीर पहिरि बर बीरा ॥५॥केस पास छबि रास सुधारे८।
जूरो करि बंधी दसतारे।
१(कूड़े ते कज़चिआण ने) गुरू जी दे भले करमां दी परख नहीण कीती।
(अ) भलेटे = भैड़िआण ने..... (वक्रोकती)।
२(गुरू जी ने तां) सारे सिज़ख परखे हन।
३जो कूड़े हन अुन्हां ने किहा सी कि गुरू जी क्रर सुभा वाले हो गए हन। जो कज़चे हन गुण ळ लख
नहीण सन सकदे।
४बिधी पूरबक जल विच।
५नाला
।फा:, आग़ार बंद॥।
६(गिज़ली) कज़छ दा नाला खोहलके (कछ) अुतारी।
।संस, : अुत्रीरण = खुहलंां। तजी = छज़डी, लाही॥।
७लक नाल कज़छ होर धारी ।तीरा = कोल, नाल॥।
८केसां ळ फाही नाल तुज़लता इस वासते दिंदे हन कि इन्हां दी सुंदरता विच प्रेमीआण दे दिल
फसदे हन।