Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ५) २०८
२३. ।फकीर फुज़लां दा बुज़क भेटा लिआइआ॥
२२ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ५ अगला अंसू>>२४
दोहरा: +इक बिर देश बिदेश ते,
गन संगति चलि आइ।
परी रही अनदपुरि, करि दरशन की चाहि++ ॥१॥
चौपई: करी मेवरे सुधि सतिगुर को।
संगति दरस मनोरथ अुर को।
घनी बटोरन है चलि आई।
बीते केतिक दिवस इथाई ॥२॥
सुनि कलीधर गिरा अुचारी।करहु प्रात को सभि किछ तारी।
बैठे सभा सथान पिछारी।
कहि दीजहि जहि कहि नर नारी ॥३॥
सुनति हुकम इम निसा बिताई।
अुठे प्राति सेवक समुदाई।
अनिक बरन के करे बिछौने।
हेम प्रयंक डसायहु लौने१ ॥४॥
आसतरन ते सहित सुहावति।
सेजबंद सुंदर छबि पावति।
कट सोण कसि निखंग शमशेर।
धनु२ करि गहे बने सम शेर ॥५॥
आनि बिराजे सभा सथान।
सिंघ पुंज को लगो दिवान।
सतिगुर की सुध संगति पाई।
हुम हुमाइ दरसन कअु आई ॥६॥
अनिक अकोरनि कहु अरपंती।
बंदति पद अरबिंद पुजंती३।
+सौ साखी दी इह ७०वीण साखी है।
++पा:-को चाइ।
पा:-मझारी।
१सुंदर।
२धनुख।
३पूजदी है।