Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ९) २१५
२९. ।पुशकर॥
२८ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ९ अगला अंसू>>३०
दोहरा: पुशकर के पूरन बिखै सभि मिलि कीनि अुपाइ।
लगे मजूर सहंस्र ही पूरहि रौर मचाइ ॥१॥
चौपई: इक पाटैण, इक म्रितका आनै।
इक अुठाइ, इक शीघ्र पयानैण।
इक ले छटी कहनि पर खरे।
इक धन देहि कहैण लिहु भरे ॥२॥
तीरथ तीर खरे इक होरैण।
शाहु सुनाइ शीघ्र इक प्रेरैण।
जल महि परै म्रिज़तका गरै१।
अुछलहि अधिक, फन२ बहु करे ॥३॥
चहूं ओर पुशकर के भीर।
लाखहु लोक बिलोकति तीर।
त्रिं काशट को लावत धाए।
पाइ पाइ पूरति समुदाए ॥४॥
धरे म्रिज़तका लै हुइ जाइ
त्रिं काशट को आनहि पाइ३।
महां कुलाहल भयो नरनिमहि।
जित कित पूरहि, पूर न है रहि४ ॥५॥
लाखहु दरब खरच करिवाइव।
देति मजूरी सभिनि बुलाइव।
सुनि सुनि ग्राम नगर महि सारे।
धाइ धाइ पहुचहि बलवारे ॥६॥
अधिक मजूरी पावनि करिहीण।
शाहि कोश ते दरब निकरिहीण।
दिन प्रति संधा कअु सभि लेति।
बहु नर बैठहि गिन गिन देति ॥७॥
केतिक दिवस बितीत गए हैण।
१गल जाणदी है।
२झज़ग।
३लिआ पाअुणदे हन।
४भरदे हन (तला) पर डरदा नहीण।