Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि २) २१७

२५. ।पज़ग बंन्हाई। प्रिथीए ते सुलही दी मिज़त्रता॥
२४ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि २ अगला अंसू>> २६
दोहरा: सोरह सत अठतीस महिण, पावसु भाद्रोण मास१।
तीज दोस पख चांदनो, तजो देहि गुनरास* ॥१॥
चौपई: तिस ते चअुथे दिन मिलि सारे।
गमने जहिण सतिगुर ससकारे।
तिस थल भसम रास को हेरे।
श्री अरजन लोचन जल गेरे ॥२॥
श्री गुर पिता आसरा मोरा।
द्रिशटि न परति अबहि कित ओरा।
रहो इकाकी बिन अविलबा।
भ्राता चितवति खोट कदंबा ॥३॥
अपर नरन सम करति ब्रिलापा।
दिखो मोहरी करति संतापा।
धीरज दियो बाक म्रिदु कहे।
सतिगुर पूरन जहिण कहिण अहे ॥४॥
धरि शरधा चितवहि जहिण कोई।
आनि सहाइक तिह ठां होई।
अपर नरन को करि दिखरावो२।
सो सरूप३ तुम आप कहावो ॥५॥
सरब भांति की शकति धरंते।
सिज़खन सदा सहाइ करंते।
इज़तादिक कहि धीरज दीने।पुन मिलि गुरू फूल सभि बीने४ ॥६॥
सरब क्रिआ करि आछी भांति।
आए पुरि, कहि जसु अवदाति५।
श्री अंम्रितसर को नर+ गयो।


११६३८ दी बरसात विच भाद्रोण दे महीने।
*पा:-सुखरास।
२होरनां ळ (मनुख नाट) करके दिखांदे हो।
३भाव सतिगुरू दा रूप।
४गुरू जी दे फुल चुंे।
५अुज़जल ।संस: अवदात = सेत, अुज़जल॥

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