Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ६) २२८

२७. ।घेरड़ (भगवान दास)॥
२६ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ६ अगला अंसू>>२८
दोहरा: नदी बिपासा तीर पर, थिरैण रीब निवाज।
चलति प्रवाह सबेग जल, खरे देखिबे काज ॥१॥
चौपई: देश जु दाबे को तट नीवा१।
मज़द्र देस तट अूचो थीवा२।
करति बिभाग३ प्रवाह चलता।
दुहि दिशि तट दै देश करंता४ ॥२॥
तीर पार को अूचे हेरे५।
केवट६ आवा तर तिस बेरे।
नौका गन को तूरन लाए।
हाथ बंदि बहु बिनै अलाए ॥३॥
चढि तरनी परपारि परे हैण।
तट अूचे पर जाइ खरे हैण।
अपर सुभट जे हैण समुदाइ।
करे पार सभि तरी चढाइ ॥४॥
हय आरोह गुरू तहि फिरे।
चहु दिशि ते थल देखनि करे।
सलिता तट पर अूचो थेह।
बैठे बहु बहार को देहि७ ॥५॥
इक दिशि बसहि लोक कुछ थोरे।
अपर थेह सूंनो त्रै ओरे।
पुरि के बसनि अुचित लखि थाना।
रिदे मनोरथ एव अुठाना ॥६॥
डेरा तिसी थेह पर कीनो।
पिखति बिपासा जल शुभ चीनो।


१दवाबे देश दे पासे दा कंढा नीवाण (दिज़स रिहा) सी।
२ते मज़दर देश दे पासे दा कंढा अुज़चा सी, भाव बारी दुआबे दा पासा है।
३दो हिज़से।
४(दरया) दोहां पासिआण दे दो कंढिआण ळ दो देश बणा रिहा है।
५पारला कंढा अुज़चा देखके।
६मलाह।
७अनद देणदा है।

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