Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ६) २४३

३२. ।पिछोण पहाड़ीआण ते सूबिआण ने आ पैंा। अुदै सिंघ बज़ध। जीवन सिंघ॥
३१ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ६ अगला अंसू>>३३
दोहरा: कीरतपुर को अुलघि कै, पुन आए निरमोह।
मुल पठानन आइ कै, लरे, लखो तबि ध्रोह१ ॥१॥
राइ गुलाब रु शाम सिंघ, पिखि लिख पज़त्रा दीन२।
जाहु राज सिरमौर के, मिलहु भूप तबि चीन ॥२॥-३तुरकनि संग बिरोध हम, एह भेजे तुम पास।
देहु ग्राम सेवहु इनहु, बासहि करहि अवास- ॥३॥
लई लिखत न्रिप ढिग गए, गुर को लिखो पछानि।
ग्राम दयो गिरवी४ तबै, बसे तिसी इसथान ॥४॥
नराज छंद: गुरू गोबिंद सिंघ जी, खरे कछूक होइ कै।
-लरे५ पिछारि आनि कै- सुनति नाद जोइ कै।
मनिद टीड ब्रिंद के६, बिलद शोर घालिओ।
तुफंग छोरि छोरि कै, अगाअू पाअुण डालिओ ॥५॥
सुनति नाद जानि कै, धुखे पलीत हेरि कै।
करंति सूध तांहि ओर, गोरि छोरि टेरि कै।
अजीत सिंघ पाइ रोपि, ठांढ गाढ होइओ।
रुके सुलछ सूरमे, मनो कपाट जोइओ७ ॥६॥
किधौण प्रवाह नीर को, पहार होइ रोकिओ।
बिसाल जंग मंडि कै, खरे करे बिलोकिओ८।
समूह हूह देति हैण, न खेत सिंघ छोरिओ।
सड़ासड़ी ततारचे९, प्रहार ब्रिंद मोरिओ ॥७॥
समान सरप फूंकते, सरीर फोरि पार हैण।


१तद (तुरकाण दा छल जाणिआण।
२ळ वेखके (गुरू जी ने) चिज़ठी लिख दिज़ती (ते किहा......)।
३चिज़ठी दाभाव इह सी।
४पिंड दा नामु है; यथा-देख भूप पढ कर अभिलाखे। गिरवी नाम ग्राम दे राखे। ।अुत्र ऐन
अंसू ३५ अंक ७॥।
५तुरक लड़े हन पिछोण दी आके।
६टिज़डी दे दल वाणूं।
७भाव अजीत सिंघ पैर जमाके पज़की तर्हां खड़ा होगिआ ते लखां वैरी रुक गए मानो (अुन्हां दे अज़गे)
तखते जड़े होए हन।
८वैरी खड़े कर लए ते अुन्हां ने डिज़ठा कि.....।
९तीर।

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