Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ३) २४८
२८. ।ठाकुर पूजक पखंडी ब्राहमण नाल चरचा॥
२७ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ३ अगला अंसू>>२९
दोहरा: इम प्रसंग रिस ढंग को१, प्रिथीए कियो निसंग।
रंग रंग की कथा अबि, गुर की सुनि हित संग ॥१॥
हाकल छंद: श्री सतिगुर अरजन पाछे२।
बहु करे अुछाह सु आछे।
सुत जनम नवो जनु होवा।
दुख बिघन ब्रिंद को खोवा ॥२॥बहु दान दीनि करि प्रेमा।
अभिलाखि पुज़त्र की छेमा।
मुख मंडल सुंदर चंदू।
पिखि हरखति आनद कंदू३ ॥३॥
द्रिग दल बिलद अरबिंदू४।
दुति कलिका रदन मनिदू५।
हरखंति दास पिखि बिं्रदू।
करि प्रेम तुरक अरु हिंदू ॥४॥
दिन रैन नैन के आगे।
रखि जननी आन न तागे६।
करि भली भांति तकराई।
निज हाथ अहार खुवाई ॥५॥
बिसवास न करती कैसे।
रखि पलक बिलोचन जैसे७।
रहि राति बिखै रखवारी।
नर जागति खरो निहारी ॥६॥
अुर त्रास धारि करि गंगा।
सुत पालति दीरघ अंगा।
१गुज़से दे ढंग दा इस तर्हां दा प्रसंग।
२गुरू अरजन जी दे पिछोण।
३भाव गुरू अरजन जी।
४नेतर कवल दे दलां वाणग चौड़े हन।
५दंदां दी शोभा कलीआण वरगी है।
६इक खिं नहीण छज़डदी।७जिवेण पलकाण अज़खां ळ रखदीआण हन।