Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ८) २५१

३५.।देअु नगर, सुंदर शाह पास बिधीचंद॥
३४ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ८ अगला अंसू>>३६
दोहरा: अग़मत दे श्री सतिगुरू, बिधीआ दियो पठाइ।
सज़तिनाम श्री मंत्र जपि, पहुचो मग सहिसाइ ॥१॥
चौपई: पूरब दज़खं संधि जि अहै१।
अगन कोन महिसे नर रहैण।
तित को अग़मत को करि ग़ोर।
जाइ पहूंचति भा इक ठौर ॥३॥
देअु नगर२ इक तहां बसंता।
सुंदर शाह फकीर रहंता।
तहां शुशक तर हेरनि करो।
बैठि बिधीचंद आनद धरो ॥३॥
हरो होति भा सो ततकाला।
पुरि जन पेखि अचंभ बिसाला।
आइ सभिनि सेवा बड कीनि।
देखहि जनु महातमा चीन ॥४॥
सुंदर शाहु बसहि तहि कानन३।
सुनति भयो महिमा इहु कानन४।
-महांपुरख इक आवन करो।
बैठति सुशक ब्रिज़छ भा हरो- ॥५॥
बिसमत हुइ हेरन कहु चाहा।
केहरि एक हकारो पाहा५।
हुइ अरूढ बिधीए ढिग आयो।
अपनि शेर ते चहति डरायो ॥६॥
हुती नरनि की भीर वडेरे।
केहरि भीम आवते हेरे।
भाजे लोक जाइ पुरि बरे।बिधीचंद इक थिरता धरे ॥७॥


१पूरब ते दज़खं दी संधी जो है।
२नाम है नगर दा जो यू. पी. विच है।
३बन विच।
४कंनीण।
५कोल।

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