Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १)३९
बाद रहै सिज़ख है नर सो
जिनि जानो नही जु इही जग कादर।
का दर है जम को तिन जीवनि
अंत भजैण गुर तेद बहादर ॥१६॥
हादर = हाग़र, प्रतज़ख होणां। मौजूद हो जाण। ।अरबी-हाग़िर॥
पिखे = देखं नाल, दरशन करन नाल। सुर = देवते।
सादर = सहत आदर दे, आदर पूरबक।
साद = सुआद। ।संस: साद॥
बिशियातप = विशिआण रूपी धुज़प, विशिआण रूपी तज़पश।
।संस: वियि+आतप॥
बादर = बज़दल। ।संस: वारिद॥ भाव रज़खक। (अ) कवि जी दा इस तुक तोण
योग दरशन विच कथी धरम मेघा समाधी वल बी इशारा हो सकदा है कि आप
पूरन पद ते इसथित हन ते अुन्हां दा वजूद विशेश करके आतम गान दान कर
रिहा है।
बाद = ब्रिथा। सज़खंा। ।संस: वाद॥
कादर = कुदरत वाला। हुकम रज़खं वाला ।अरबी, कादर॥।
का दर = का। दर = की दर है, की डर है।
(अ) का दर = दर = दरवाजा, का = कीह, भाव (जम दे) दरवाजे नाल
कीह (वासता)।
जीवनि = जीवाण ळ।
अरथ: (श्री गुरू तेग बहादर जी ळ) जिज़थे याद करो (अुज़ग्रथे ही) (प्रतज़ख आ)
हाग़र हुंदेहन, सुखां दा समुंदर (ऐसे हन कि अुहनां दे) दरशन करन
नाल देवते आदर नाल (मिलदे हन)।
(आप) इक आतम गान दे सुआद विच रचे होए हन (ते जगासूआण ळ) विशय
रूपी करड़ी धुज़प तोण (रज़खा करन लई) वज़ड बज़दल समान हन।
(हां,) अुह नर सिज़ख होके बी सज़खंे रहे हन, जिन्हां ने नहीण जाणिआण कि इही जगत
दे कादर हन।
(हां) अुन्हां जीवाण ळ जम दा की डर है जिन्हां ने अंत (समेण) गुरू तेग बहादर जी ळ
भेजिआ है।
होर अरथ: १. सुखां दे समुंदर जी ळ जिज़थे याद करीए अुथे ही हाग़र हुंदे हन,
जिन्हां दा दरशन देवते आदर (सतिकार) नाल करदे हन।
४. ओहनां जीवाण ळ यमां दे दरवाजे नाल की (वासता है) जिन्हां ने अंत वेले
गुरू तेग बहादर जी ळ भेजिआ है।
१२. इश गुरू-श्री गुरू गोबिंद सिंघ जी-मंगल।
चित्रपदा छंद: त्राण करैण निज दासन की
भव बंधन तोर दद निरबाण।