Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ११) २५४
३६. ।भंदेर नगर। अलीशेर। जोगे। भूपाली॥
३५ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ११ अगला अंसू>>३७
दोहरा: तहि ते सतिगुर गमन किय, गए भंदेहरी ग्राम।
निकटि जाइ ठांढे भए, पठो सिज़ख तिन धान ॥१॥
चौपई: सिज़ख जाइ करि नर गन लहो।
अुतरनि हेतु सभिनि सोण कहो।वाहिगुरू ठाढे ढिग ग्राम।
डेरा करहि बतावहु धाम ॥२॥
बसहि जामनी प्रात सिधारैण।
दरशन दरसहु बिघन बिदारैण।
सुनि भदेहरी१ कहि तिस काल।
जाहु बूझि करि सदन कुलाल२ ॥३॥
है हमेश की रीति हमारे।
घर कुलाल के देति अुतारे।
जो चाहति किय राति बसेरा।
सदन तिनहु के पावति डेरा ॥४॥
सुनि सखि ने गुर निकटि सुनाई।
मूरख लोक बसहि इस थांई।
नहि कुछ महिमा लखहि तुमारी।
जामनि बसनि३ कुरीत अुचारी ॥५॥
अपर ग्राम चलि करहु बसेरा।
इन मनमुज़खनि भाग मंदेरा।
जथा रंक गन सुरतरु पाए।
नहि सेवहि किछ ले न सकाए ॥६॥
सुनि सतिगुर चलि परे अगारी।
मूढनि महिमा कछु न बिचारी।
अलीशेर४ डेरा किय ग्राम।
बैठि बिराजे श्री सुख धाम ॥७॥
दोहरा: पीछे सभिनि भंदेहरनि, महिमा सुनी बिसाल।
१भंदेर दे लोकीण।
२घुमिआर दा घर।
३रात दे वज़संे दी।
४नाम पिंड।