Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति २) २६९
३६. ।भीमचंद दा वग़ीर मेल हित आइआ॥
३५ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति २ अगला अंसू>>३७
दोहरा: सुधि पसरी पुरि ग्राम महि, गुर आनदपुरि आइ।
शत्रनि के चिंता बधी, सिज़खन सुनि सुख पाइ ॥१॥
सैया: आन बसे कहिलूर सु देश
अशेश जहां सुख रूर१ बिसाला।
सतज़द्रव की सरिता बर कूल२
सु नीर गहीर३ सदा जिस चाला।
सैल अुतंग दिशा दुसरी
करिबे हित सैल महां छबि वाला।
चंड प्रचंड को नैन सथंडल
दीनअखंडल को सुर जाला४++ ॥२॥
कीरति कौ बिसतीरति हैण गन
-सैल पती सभि जीत लए-।
लोक बसावति हैण पुरि आनद
दान को देति हैण मान कए५।
जो गुनवंति अुचारति हैण
जसु बाणछति सो धन लेति भए।
दूर ते आवति छंद सुनावति
पावति दरब दरिज़द्र हए६ ॥३॥
भीर अनेक घनी पुरि आनद
आनि दुकान करे बिवहारा।
अंबर ले पशमबंर को गन
ब्रिंद पटंबर केरि अंबारा।
१सुंदर।
२कंढा।
३डूंघा।
४जिस चंडिका ने इंदर ळ सरग दिज़ता (अुस) तेज वाली चंडिका दे नैंां दा थड़ा या टिज़ला।
।अखंडल = इंद्र॥।
++पर अज़गे जाके कवी जी इस थां ळ नैंे जज़ट दे नाम नाल सबंधति दज़संगे ते कहिंगे कि इस
ने थां प्रगट कीता ते इसदे नां ते वज़जिआ। सती दे नैंां नाल इस ळ एथे संबंधति दज़सिआ है
पर नैंी ताल दे मंदर वाले सती दे नैं अुथे डिज़गे दज़सदे हन।
५मान करके।
६नाश हो जाणदा है।