Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) २७७

२८. ।श्री गुरू अंगद देव जी दा जोती जोत समाअुणा॥
२७ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि १ अगला अंसू>>२९
दोहरा: अमरदास हुइ पास गुर, निज अरदास प्रकाश।
अदभुत लीला आप की, सदा बिलास हुलास ॥१॥
चौपई: इह कारन किम रावर कीना?
सभि के मन अचरज बड दीना।
इस प्रकार नहिण अुचित तुमारे।
परम धाम को जथा पधारे ॥२॥
श्री अंगद सुनि तबहि बखाना।
सिज़खन के मन शंक महाना।
-सहत सरीर बिकुंठ सिधारे१-।
आपस महिण मिल करति अुचारे ॥३॥
एव न करते शरधा नासति।
लगति दोसु मम दासन ग्रासति।
सभिहिनि मन शंका मल धारी।
इहु क्रिति जलु साथ पखारा२ ॥४॥मम संगत ते सिख सुख पावहिण।
बिन शरधा सो३ हाथ न आवहि।
बिगस बदन ते बहुर बखानी।
सुनि पुरखा! तूं पूरन गानी* ॥५॥
इह जग सलिता को सु४ प्रवाहा।
चलो जात, पुन पूरन आहा।
जल तरंग जिअुण जलहि समावैण।
हैण जल जल ते भिंन५ दिखावै ॥६॥
संत दैत तिम नांहिन माने।
आतम परमातम इक जाने।

१(कि इह बी) सरीर समेत बैकुंठ सिधारन (अ) (कि गुरू नानक) सिधारे हन।
२इह करके (अुह मैल मानोण) जल नाल धो दिज़ती है।
३अुह (सुख)।
*गुरू अमर दास जी हुण आपणे असली सरूप विच प्रकाशमान हन ते आप हन: हुण अुन्हां ळ
पूरन गानी कहिंा नीवीण अुपमा है, गान तां अुन्हां तोण प्रकाश पाअुणदा है। कवि जी दी मुराद
पूरन ते ग़ोर देण तोण है, किअुणकि ओह सभ बिध पूरन हन, आप हन।
४वाणगू है।
५अज़ड।

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