Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १२) २८१
३६. ।अयाली मिठाई लैं गिआ फड़िआ गिआ॥
३५ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि १२ अगला अंसू>>३७
दोहरा: अुपबन बिखै प्रवेश भे,
पिखि रमनीक सथान।
अुतरे करि के हय खरे,
बंधन करि दिढ पान१ ॥१॥
चौपई: निज निज असु२ ढिग सिख तबि बैसे।
चितवति -गुरू करहि अबि कैसे-।
देखहि बाग प्रभू बहु भांते।
इत को आवति अुत को जाते ॥२॥
बहुर सथंडल पर चढि फिरैण।
आवनि जानि बारि बहु करैण।
बा पौर की दिशा बिलोकहि।
अपर दिशनि ते द्रिशटी रोकहि ॥३॥
फिरहि कदम पोशी३ कहु करते।
अुपबन दर को बहुत निहरिते।
तिस छिन एक अयाली आयो।
अजा ब्रिंद को फिरति चरायो ॥४॥
गमनति देखि हकारो तांही।
सुनि गुहार चलि आयो पाही।
दरशन करि पगबंदन ठानी।
तबि गुरुदेव कही मुख बानी ॥५॥
हमरो काम एक करि आअु।
निज मिहनत ले करि पुन जाअु।
अजा ब्रिंद हम रहहि बिलोकति।
राखहिगे चहुं दिशि ते रोकति ॥६॥
सुनति अयाली लबु ने प्रेरो।
१हज़थां नाल तकड़े बज़धे।
२घोड़े।
३फारसी विच पेश कदमी = पैर आगे धरन ळ कहिदे हन। कवी जी ने इस दा भाव टहिलंा
समझिआ है ते कदम पेशी अुलटा के बना लिआ है ते लिखारीआण दी क्रिपा ने पेशी दा
पोशी कर दिज़ता है। अगलीआण पिछलीआण तुकाण तोण भाव, टहिलं दा ही सही हो रिहा है। कई
गानी इस ळ कदम बोसी = पैर चुंमणा समझदे हन, पैर चुंमण दा भाव एथे अप्रसंगक है।