Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति १) २८१
३७. ।नदचंद ळ दिवान दा रुतबा। बन विच विचरना॥
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दोहरा: नदचंद पर गुर खुशी,
जानोण लाइक बीर।
चाहो करो दिवान को,
क्रिपासिंधु मतिधीर ॥१॥
पाधड़ी छंद: निज निकट हकारि मातुल क्रिपाल।
तिह लगे बूझिबे गुर क्रिपाल।
इह नद चंद मति को बिलद।बहु सावधान गन रिपु निकंद ॥२॥
नित शसत्र धरनि अज़भास कीनि।
इस सम मसंद नहि अपर चीनि।
गुर बडन१ पास इन के बडेर।
नित रहे सेवकी करति नेर ॥३॥
जिह अुमर शाहि२ कहि नाम लोक।
राखो नजीक नीके बिलोकि।
तिह केरि पौत्र इह नदचंद।
अबि करहि बीर दरजा बिलद३ ॥४॥
सुनि कै क्रिपाल सनमान साथ।
बच भनो आप हो+ सकल नाथ।
समुदाइ सैन महि इक दिवान।
चहियति ग़रूर बड सावधान ॥५॥
सभि की संभाल जो ले हमेश।
किस थान पठन निज नर विशेश४।
इज़तादि काज समुदाइ जोइ।
बिन नर बिसाल नहि बनहि कोइ ॥६॥
तबि सिरेपाअु सतिगुर मंगाइ।
१भाव गुरू पंचम जी।
२डरोली निवासी संघा गोत दा जज़ट मसंद, जो श्री गुरू अरजन देव जी दी आगा नाल हरिमंदर
दी चिंवाई वेले प्रेम नाल सेवा करदा सी. इह पूजा दे धन ळ विहु जाणदा सी।
३इस सूरमेण दा रुतबा बिलद करीए।
+पा:-को।
४भेजंा हुंदा है आपणा खास आदमी।