Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (ऐन २) ३९

लाखहु बरखन को इह थाना।
रहे संभालति अहै हमारा।
जबि कितहूं करि गए किनारा ॥४२॥
ले करि अपर सु मालिक बनोण।
आश्रम बडो पुरातन बनोण।
निशचे नहीण कहे पर आवै।
तौ हम सभि कौ चिंन्ह दिखावैण ॥४३॥
जहि डेरा तहि खोदन लाए।
केतिक नीचे थलखुनवाए।
निकसो तहां भसम को ढेरा।
जहि आसन थे परो बडेरा ॥४४॥
पुन प्रभु भनोण और खनि लीजै।
करमंडल, माला दिखरीजै।
दुशट दमन जिस तन महि नामू।
करे तीब्र तप तबि अभिरामू ॥४५॥
बरख हग़ारहु इस थल बसि कै।
संकट सहे सकल तन कसि कै।
पुन कुछ खोदी अपर अगारी।
माला प्रभु की तबहि निहारी ॥४६॥
तप प्रभाव ते आसन परो।
होइ पुरातन१ नांहिन गरो।
करमंडल तूंबे को हेरा।
तिम ही परो महां तप केरा ॥४७॥
बिसम रहे पिखि कै समुदाई।
धंन धंन गुर सभिनि अलाई।
प्रीत प्रतीत भई सभि केरी।
नमो करी पद पर तिस बेरी ॥४८॥
इति श्री गुर प्रताप सूरज ग्रिंथे अुज़तर ऐने चिंन्ह दिखावन प्रसंग
बरनन नाम चतुरथो अंसू ॥४॥


१पुराणा होण ते बी।

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