Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ६) २८३

३४. ।बलवंड खां ते कलांा बज़ध॥
३३ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ६ अगला अंसू>>३५
दोहरा: बजे जुझाअू१ दुह दिशिनि,
अुमडि चली बड सैन।
कज़लांा तबि कोप कै,
तुरकनि को पिखि नैन ॥१॥
भुयंग छंद: जहां भेड़ गाड़्हो, कराचोल२ चालैण।
परो धाइ सूरा अनी ब्रिंद हालैण३।
तुफंगानि मैण दोइ डालति गोरी।
करो ढोइ ढूके इकंबार छोरी ॥२॥
पलीते धुखे ब्रिंद जाला अुगाली४।
अुठै नाद अूचे दुअू ओर चाली।
बही शूंक गोरीसड़ाके लगंती।
किसू तुंड कै मूंड खंडै धसंती५ ॥३॥
कसैण फेर बारूद डालैण शिताबी।
लगैण सूर घूमैण गिरैण जोण शराबी।
छणंकार होवै गजं केर ठोके६।
कड़ाकाड़ छोरैण सभै शज़त्र रोके ॥४॥
जहां खान के चुंग बाणधे७ लरंते।
करी मार भारी गिरंते मरंते।
परे जाइ जोधा गुरू सिज़ख बंके।
करैण शीघ्रता भूर नांही अतंके८ ॥५॥
धरैण सूरता श्री गुरू को दिखावैण।
बंगारैण मलेछानि सौहैण चलावैण।
गिरे बीर बंके करे मूछ बंकी९।


१मारू वाजे।
२तलवाराण।
३सारी फौज हिला दिज़ती।
४समूह बंदूकाण दे पलीते धुखे ।जाला अुगला = बंदूक॥
५किसे दा मुज़ख या सिर तोड़दी होई धस जाणदी है।
६गजाण दे (बंदूकाण विच) ठोकिआण.....।
७टोलीआण बंन्हके।
८डरदे नहीण।
९मुज़छां ते ताअु देण वाले।

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