Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ९) २८३
३९. ।ग़हिरीली पोशाक पहिनी। खांे तोण फुज़ल बणाए॥
३८ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ९ अगला अंसू>>४०
दोहरा: लजिति काग़ी सभा महि,
रहो बदन निहुराइ१।
हरख भयो नौरंग महां,
मिलिबे चहि अधिकाइ ॥१॥
चौपई: मति बिसमत ने बाक बखाना।
अग़मति इन महि महिद महाना।
पुन परखनि हित ठानि अुपाअु।अग़मति जियै नांहि तु मरि जाअु२ ॥२॥
पोशिश सूखम बसत्र बनाए।
तिन महि ग़हिर बिसाल लगाए।
छुवति अंग को हानहि प्राना।
जोण बिसीअर डस जाइ महाना ॥३॥
सगरे बसत्रनि बिखै रचाई।
मनुख समीपी हाथ पठाई।
आप बैठि पहिरावअु सारी।
केतिक चिर तहि लेहु निहारी ॥४॥
लै गमनो, गुर सुत ढिग आइव।
पोशिश आगे धरी बनाइव।
बहुत प्रसंन शाहु हुइ रहो।
तुम सोण बचन बंदगी कहो ॥५॥
हेतु पहिरबे पोशिश नीकी।
पठी मोहि कर शरधा जी की३।
महां प्रेम करि बाक अुचरो।
-आप बैठि पहिरावनि करो- ॥६॥
अबहि सफल हुइ पठवनि शाहू।
पहिरनि करहु अपनि तन मांहू।
सतिगुर सुत ने लखी खुटाई।
१निवाके।
२जे इस विच करामात होवेगी तां जीवेगा, नहीण तां मर जाएगा।
३भेजी है मेरे हज़थीण चित दी शरधा नाल।