Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ४) २८६
३७. ।गअू दी आण ते आनद पुर छज़डंा॥
३६ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ४ अगला अंसू>>३८
दोहरा: इस प्रकार श्री सतिगुरू,
केतिक दोस बिताइ।
करे पराजै गिरपती,
बिजै सुजसु बहु पाइ ॥१॥
कबिज़त: देशन बिदेश मैण विशेश जसु फैल रहो,
गुरू के मनिद नहीण सूरमा जहान मैण।
सैलन को बल सारो, तीन लछ सैन जोरि,
घालो ग़ोर घोर, नहि आवति बखान मैण१।
केते मारि लीनि भट, घाइल बिसाल कीनि,
हारे हीन है कैगए२ आपने सथान मैण।
प्रभू जी दीवान मैण, कमान बान पान मैण,
बिराजैण गुन गान मैण कि दान सनमान मैण ॥२॥
जहां कहां फैलो जसु चांदनी बितान मानो३,
सभि पर छायो जैसे छज़त्र सेत४ सीस पर५।
हीरा सोण प्रकाश रहो, सुधा सम चाहै, शंभु,
चौर सम झूलै समुदाइ अवनीश पर।
बीच सति संगति के हंसन की पंगत जोण
फूल रही मालती सु देश बीच घर घर।
सिंघ जहि सुनहि, बिरमाइ रहैण मन६ सबै*
जैसे है चकोर गन, लोभैण रजनीश पर७ ॥३॥
सुनति गिरीश कै गिरीशन के नर गन८
१कहिआ नहीण जाणदा।
२(पहाड़ीए) गए।
३चांदनी दे चंदोए वाणग।
४चिटा छज़तर।
५(अुह जस) हीरे वाणग प्रकाश रिहा है, शिव जी (अुस जस ळ) अंम्रत वाणू चाह रहे हन, सारी
धरती दे राजिआण पर झूल रिहा है चौर वाणू। ।हीरा, अंम्रत, शिव, चौर सारे चिज़टे हन ते जस
नाल अुपमां देईदी है इन्हां दी॥।
६लुभित हो रहे हन मन।
*पा:-जबै।
७चंद ते।
८पहाड़ी राजे या पहाड़ी राजिआण दे लोग सुणके।