Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) २९२
३०. ।श्री गुर अमर देव जी दा नित बिवहार॥
२९ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि १ अगला अंसू>>३१
दोहरा: सपत दिवस पीछे प्रभू,
ठहिराइव बिवहार।
चलहिण निताप्रति तिसी बिधि,सुनहु सु करव अुचार ॥१॥
निशानी छंद: जाम निसा बाकी रहै, हुइ अंम्रित वेला।
तबि जागहिण श्री सतिगुरू, लखि भजन सुहेला१।
बज़लू आगा लेहि तब, जल को अुठि जावै।
सलिता ते भरि कलस को, मज़जन करिवावै ॥२॥
केसनि महिण निति दधी सोण, गुर करहिण सकारे२।
परम ब्रिज़ध बहु सेत कच३*, कर शमश पखारेण४।
बज़लू सरब सरीर को, अुबटनि५ मलि आछे।
सुज़ध होइ सभि रीति सोण, पट पहिरहिण पाछे ॥३॥
तिलक लगावहिण भाल महिण, शुभ चंदन केरा।
बहुर सिंघासन पर थिरहिण, इक मन तिस बेरा।
निज अनद महिण लीन हुइ, लग सहजि समाधा।
जोगी शिव ब्रहमादि सभि, जिस करहिण अराधा ॥४॥
प्राति होति लग इसी बिधि, इसथिरता पावैण।
बहुर रबाबी आइ करि,
गुरशबद सु गावैण।
अनिक रीति के राग को,
सुनि अनद बिलदे।
मनो मधुर घन गरजते, जोण मोर सुहंदे ॥५॥
श्री नानक अंगद गुरू, इन की बडिआई।
बशश दई निहाल कर, नर सुख समुदाई६।१भजन दा सुहणा (समां)।
२(इशनान करदे हन) सवेरे।
३चिज़टे केस।
*पा:-बहु सेत हैण।
४हज़थां नाल दाड़्हा धोणदे हन।
५वटंा।
६श्री गुरू नानक ते अंगद जी (वाणू) इन्हां दी वडिआई (बी होई कि) (इन्हां ने अुन्हां वाणू ही)
सारे नराण ळ बखशां नाल निहाल करके सुख दिज़ते हन (अ) भाव (रबाबी) गुरू नानक ते गुरू