Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ९) २९७

४१. ।हितू बेगम। पदमनी॥
४०ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ९ अगला अंसू>>४२
दोहरा: इम नौरंग अुर हरख कै,
अुज़तम वसतु विशाल।
नितप्रति भेजति रहति है,
सनमानति सभि काल ॥१॥
चौपई: देश बिदेशनिवसतू आवैण।
सतिगुर सुत के निकटि पठावै।
ग़रदालू१ नशपाती सेव।
मेवा पठहि करहि बहु सेव ॥२॥
भांति भांति भे दारम२ घने।
खारक३, खोपे, जाहि न गने।
दिज़ली महि अुपबन ते४ आवैण।
फल दल फूल अनेक पठावै ॥३॥
बहुत मोल के बसत्र सुहावैण।
अपरनि को दुरलभ, नहि पावै५।
बरन बरन के सुंदर दीखहि।
भेजति पहिरनि आप सरीखहि६ ॥४॥
दरब अधिक रोग़नि को७ आवै।
दिनप्रति अति सनमान ब्रिधावै।
बिसमै बुधि ते बहत बिचारै।
निस बासुर मन मांहि संभारै ॥५॥
कबहि कचहिरी समै बुलावै।
कबि एकल ही सुनै सुनावै।
इक दिन बैठि पालकी आवा।
महां प्रेम ते पास बहावा ॥६॥


१इज़क प्रकार दा फल अलूचे दी भांती दा।
२अनार।
३छुहारे। खजूराण।
४(होर फल जो) दिज़ली दे बागां तोण।
५नहीण पा सकदे।
६आपणे वरगे।
७रग़ीने दा।

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