Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १२) ३०१

३९. ।साहिबग़ादे जी ने घड़े फुंडंे। मिज़ठा खूह खारा होइआ॥
३८ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि १२ अगला अंसू>>४०
दोहरा: दिज़ली महि प्रविशे गुरू,
गए हवेली मांहि।
अुतरे भयो ब्रितंत जिम,
कहौण कथा पुन तांहि१ ॥१॥
चौपई: सरब प्रसंग सुनावौण फेर।
जिम तुरकेशुरअरु गुर केर।
अबि पटंे की कथा बखानौण।
अवसर२ इहां कहनि को जानौण ॥२॥
जबि ते सतिगुर सुत तजि आए।
तिन पीछे जिम खेल मचाए।
नित शसत्रनि सोण प्रेम करंते।
जिस किस ते मंगवाइ रखंते ॥३॥
एक मंच पर राखि टिकाए।
तिन ढिग नित प्रति धूप धुखाए।
पुशप अनेक बरन अनवावैण।
कबहूं गूंदि माल अरपावैण ॥४॥
कबहूं अंजुल भरहि३ चढावैण।
बंदन ठानहि सीस निवावैण।
फिरहि प्रदछना चहुदिशि तीन।
चंदन चरचहि प्रेम सु पीन ॥५॥
ढिग शाहुनि के सिस जबि आवैण।
कहि महिमा को बहुत सुनावैण।
इह आछो छोटो हम लाइक।
करहि प्रहारन रिपु गन घाइक ॥६॥
करहि बिलोकन मातु रु दादी।
-का लीला धारहि अहिलादी।
रचहि पितामा सम क्रित एई।


१ओथोण दी कथा फेर कहांगा।
२समां।
३बुज़क भर के।

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