Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति २) ३०१
४०. ।नादौं दा जंग आरंभ॥
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दोहरा: भए शगुन सभि जीत के,
भीमचंद आनद।
गुलकाण और बरूद बहु,
दे करि बीरनि ब्रिंद ॥१॥
रसावल छंद: चढो दै नगारा१। अगाअू पधारा।
चले बीर मानी। धरे शसत्र पानी२ ॥२॥
तुफंगैण संभारी। भनैण मार मारी।
नदौंं पहूंचे।रिपू थान अूचे ॥३॥
करो घेरि बारा३। बडो काठ डारा।
दिढं दुरग जैसे४। बरे बीच तैसे५ ॥४॥
सरं चांप संगा। कसी हैण तुफंगा।
-करैणगे लराई-। सु तारी बनाई ॥५॥
-ढुकै नेर जोई६। हतैण छोरि सोई७-।
बजावैण नगारे। करो बार टारे८ ॥६॥
गयो भीम चंदं। पिखो ब्रिंद ब्रिंदं९*।
-थिरो थान अूचे१०। खरे काठ मूचे११ ॥७॥
करी ओट मोटी। लगै नांहि चोटी-।
तअू होइ आगे। पलीते सु दागे ॥८॥
छुटी ब्रिंद गोरी। गई बार ओरी१२।
लगै काठ मांही। मरैण शज़त्र नांही ॥९॥
१नगारे ते (चौब) देके।
२हज़थां विच।
३घेर के वाड़ा बणा लिआ (शज़त्र ने)।
४भाव काठ नाल किल्हे वरगा वाड़ा बणाइआ सी।
५अुस विच वड़े होए सन।
६(जे कोई वाड़े दे) नेड़े ढुज़केगा।
७भाव बंदूकाण छज़डके माराणगे अुस ळ।
८वाड़े दा बहाना (अुहला) बणाके।
९सभनां दे इकज़ठ ळ डिज़ठा।
*पा:बंद बंदं।
१०वैरी खड़ा है अुज़थे थां ते।
११बहुत।
१२(काठ दी) वाड़ वज़ल।