Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ६) ३१२
४०. ।बाबा ग़ोरावर सिंघ जी दा जुज़ध॥
३९ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ६ अगला अंसू>>४१
दोहरा: बहुर हेल को करति भे, चहुदिश ते समुदाइ।
तबि ग़ोरावर सिंघ जी+, ले गुर पिता रग़ाइ++ ॥१॥
चौपई: पंच सिंघ निकसे तिन संग।
जिन चित चाअु करन को जंग।
प्रथम तुफंगनि की करि मार।
मार मार करि परे जुझार ॥२॥बहुर तड़ातड़ छोड़ि तमाचे।
सतिगुर को रुख पिखि रिस राचे।
अपर अुपाइ न को बनि आवै।
प्रभु सनमुख हुइ सीस चड़ावैण ॥३॥
म्रिग झुंडनि महि केहरि फिरै।
न्रिभै बीर किह त्रास न धरैण।
-प्रान बचैण- इह लालच छोरा।
मारहि अज़ग्र परैण रिपु ओरा१ ॥४॥
यौण गरजति हैण सिंघ जुझारे।
थिरैण न रिपु इत अुत दैण टारे।
पहुचि जाहि पर शसत्र चलावहि।
इक ते दै करि धरनि गिरावहि ॥५॥
मार मार करि तुरक हग़ारोण।
इत अुत फिरि घेरहि दिश चारोण।
तअू मरन की शंक न जिन को।
कहां सूरता गुन गन तिन को२ ॥६॥
पहुचहि सनमुख जिस कर झारहि३।
गुर प्रताप ते ततछिन मारहि।
+दूसरे साहिबग़ादे जो एथे जूझे जुझार सिंघ जी सन, देखो रुत २ अंसू ४४ अंक ३८ दी हेठली
टूक।
++नवीन लेखकाण ने दूसरे साहिबग़ादे जी दा इस वेले पांी मंगणा वरणन कीता है ते इह गज़ल
असल वाकिआ नहीण है। इह गज़ल गुर शोभा विज़च वी नहीण लिखी।
१अज़गे होके वैरी ळ मारीए इस लई (वज़धके) वैरी ते पैणदेहन।
२तिन्हां दी सूरमता दे सारे गुण कीह कहीए।
३जिस दे अुज़ते हज़थ झाड़दे हन।