Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ८) ३१२
४५. ।श्री हरिराइ जी दे जामे नाल फुज़ल टुज़टा॥
४४ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ८ अगला अंसू>>४६
दोहरा: श्री होरिगोविंद चंद जी, बिरह बिधीचंद पाइ।
बहु अुदास अुर महि रहैण, भेव न कछू जनाइ ॥१॥
चौपई: लाल चंद को राखहि पासा।
बहु भांतनि ते देति दिलासा।
बिधीचंद पाछे दसतार।बंधिवाई म्रिदु बाक अुचारि ॥२॥
तिस बिधि ही दीनसि बडिआई।
ले हरखो, गुर सेव कमाई।
करन कार पर तिसही लायहु।
बडे मसंदनि संग मिलायहु ॥३॥
एक दिवस श्री हरिगोविंद।
पहुच अुपबन पिखिनि बिलद।
खरे जहां बहु तरुवरु जाती।
चंपक, राइ बेल बहु भांती ॥४॥
आरू, आमरूद, तरु अंब।
निबू कदली१ खरे कदंब२।
दारम३, सेअु, फारसे४, खिरनी५।
फूलन डारी बहु बिधि बरनी ॥५॥
कठल६, बठल७, नौरंगी सुंदर।
इज़तादिक तरु अुपबन अंदर।
राइ जोध अरु भाना संग।
वहिर अुतरि तजि दए तुरंग ॥६॥
अंतर बरे तरोवर हेरहि।
पुशप पुशप पर द्रिशटी प्रेरहि।
१केले।
२इक ब्रिज़छ जिसळ गोल गोल खेळ वरगे फुल पैणदे हन।
३अनार।
४फालसा।
५निमोली दी शकल दे मिज़ठे फल वाला इज़क ब्रिज़छ।
६कटहर या कठल।
७ढेअू।