Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ५) ३१३
४१. ।सिज़खां दे प्रसंग। चरचा चार प्रकार। वेदांत कड़ाह प्रशाद॥
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दोहरा: दरगाहा भंडारीआ, सिज़ख हुतो मति धीर।
श्री गुर हरि गोविंद को, सेवति हरि करि तीर ॥१॥
चौपई: हाथ जोरि अरदास बखानी।
सिज़ख करहि चरचा गुरु बानी।
कितिक परहि लर आपस मांही।
निज निज अरथ हटन देण नांही ॥२॥
सुनि श्री हरि गोविंद अुचारा।
होवति चरचा चारि प्रकारा।
गुर सिज़खनि को चहीअति दोइ।
दोनहु को तागति हैण सोइ ॥३॥
इक इह चरचा -वाद- कहावै।
शबद अरथ जो नहि अुर आवै।
करहि परसपर बूझनि कहिने१।
सुनहि प्रेम ते अरथ सु लहिने ॥४॥
दूजी चरचा -हेत२- पछान।
निज बुधि महि सो करति बखान३।
सुनति दूसरे म्रिदु बच कहैण।
-इहु नहि अरथ अपर बिधिअहैण४- ॥५॥
शबद अरथ५ कहि भलो सुनायो।
सुनो जथारथ तिह मन भायो।
बहुरो दे करि बुज़ध विशेख।
करहि आप तैसे शुभ देखि ॥६॥
भनति सुनति दोनहु मिलि आछे।
निरने होइ अरथ जो पाछे।
पज़ख बाद तजि सो अुर धरैण।
आपस महि सराहना करैण ॥७॥
१आपस विच कहिके पुछ लैंा।
२पिआर वाली चरचा।
३जो आपणी बुज़धी विच है सो (सिज़ख) कथन करदा है।
४होरवेण हन।
५शबद दा अरथ।