Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ८) ३२५
४७. ।श्री अनद जी दे दरशन॥
४६ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ८ अगला अंसू>>४८
दोहरा: श्री सतिगुर जोधा बली, बसि भगतनि के नीत।
इक दिन बैठे सभा महि, दरसहि सिख मुद चीत ॥१॥
चौपई: किनहू खबर आइ तबि दीनि।
गोइंदवाल बास जिन कीनि।
भज़लन की कुल भगति बिसाला।
सिज़खी को प्रकाश सभि काला ॥२॥
श्री गुर अमरदास की अंस।
सुत पौत्रे नाती१ बड बंस।
मोहन अपर मोहरी जेई।
भा परलोक देहि तजि सेई ॥३॥
संत मनोहर दास बिसाला।
सो भी पहुंचति भा हरिशाला२।
सुनिकै श्री गुर हरिगोविंद।
हरि पुरि३ जाइ बसे इह ब्रिंद ॥४॥
अपर नरन सम शोक करो है४।
रुचिर बिलोचन नीर भरो है।
पौणछति हैण रुमाल के साथ।वहिर दार ते निकसे नाथ ॥५॥
बैठे अपर नरन सम सोइ।
सुनि सुनि आइ गए सभि कोइ।
थिरि सभि महि तबि गुरू अगाध।
धरे मौनता लगी समाधि ॥६॥
दुइ घटिका आसन थिर रहे।
लोचन मुद न तन सुध अहे।
रहे अडोल अंग तिस काल।
पुन खोले द्रिग रुचिर बिसाल ॥७॥
वाहु! वाहु! मुख ते तबि कहो।
१पुत्र, पौत्रे ते दोहते।
२सज़च खंड।
३सच खंड।
४इह शोक नहीण है, पर इक अुज़चे दरजे दी दवंता है; जो अगले प्रसंग तोण विदत हो जाणदी है।